आदिवासी जीवनशैली - 1 Dr. Ashmi Chaudhari द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

आदिवासी जीवनशैली - 1

लोग आदिवासी समाज के बारे में जानते हैं पर आदिवासी समाज के सिवा अन्य समाज या फिर अन्य लोग उनकी परंपरा, उनका खानपान, उनकी जीवनशैली , उनकी कुलदेवी, उनके त्यौहार , उनकी भाषाएं के बारे में नहीं जानते यहां तक की आदिवासी समाज में आज की पीढ़ी धीरे धीरे यह सब कुछ भूल रही है ।
आदिवासी का इतिहास और संस्कृति कुछ अलग तरह ही है । आदिवासी भारत देश के मूल निवासी जाने जाते हैं। वे वर्षों से भारत में रहते हैं हमारे पूर्वजों भी आदिवासी थे। पर आज भी कहीं सालों के बाद पूरे भारत में सबसे ज्यादा वस्ती आदिवासी की है और आदिवासी समाज सबसे अलग तरह से और मेहनत से आगे बढ़ रहा है।
आदिवासी समाज की भाषा की बात की जाए तो वह अलग-अलग है यहां तक की आदिवासी समाज में "जोहार" बोलने का मतलब नमस्कार करना है। इस तरह गुजरात में दाहोद में आदिवासी की भाषा कुछ अलग है , और दक्षिण गुजरात में गामित , चौधरी , पटेल की भाषा अलग-अलग विभिन्न प्रकार में बोली जाती है।
(१) क्या आप आदिवासी समाज के देव देवियों के बारे में जानते हैं???
आदिवासी समाज में आज भी लोग किसी अच्छे काम के लिए या फिर अगर खेती में नया पाक आता है, तो सबसे पहले वे लोग अपने देवों को और देवियों को पूजते है उसके बाद ही अपना काम करते हैं या उपयोग करते हैं। आदिवासी समाज में आज भी पाली देव, होली देव, भूत मामा गांव की कुलदेवी मोरी माता की पूजा करते हैं। आदिवासी समाज की कुलदेवी याहा मोगी देवमोगरा माता के बारे में क्या आप इतिहास जानते हैं???
आदिवासी देवी मानी जाने वाली पंडोरी माता उर्फ याहमोगी माता हैं। नर्मदा जिले के देवमोगरा में एक तीर्थ स्थल है। देवमोगरा नर्मदा जिले के पूर्वी भाग में सतपुड़ा पहाड़ों की तलहटी में सागबरा तालुक में घने जंगल में एक प्रसिद्ध स्थान है। शिवरात्रि पर आदिवासियों का भव्य जमावड़ा होता है। नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला को हलोदाब कहा जाता है। याहा मोगी ने बहनों की खुशी के लिए बचपन में घर बार छोड़ दिया था बिना कोई अस्त्र-शस्त्र के सुख शांति को स्थापित किया था बिना कोई लड़ाई झगड़े के पूरा इतिहास रचा दिया था सतपुड़ा की वादियों में नाम गूंजता कर दिया था जरूरत पड़ने पर आदिवासियों को राजपाट का अनाज दान कर दिया था आदिवासियों ने खुश होकर उसे मेराली याह नाम दिया था हजारों सालों से खड़ी है वह बिना कोई सवारी के बिना कोई स्वार्थ के कर रही है वह आदिवासियों की रखवाली वह महान वीरांगना आदिवासियों की कुलदेवी हैं।
यहां पे इंसान के साथ साथ मुर्गियों और बकरियों को देवी के दर्शन करने की अनुमति है। और साथ साथ ब्राह्मण विचारधारा समाप्त हो गई है और आदिवासी पुजारियों की नियुक्ति की गई है । तो यहां है याहा मोगी का इतिहास।
आदिवासी समाज की संस्कृति यहां पर ही खत्म नहीं हैं। आगे भी ...
(२) " क्या आप आदिवासी समाज के फ्लैग के बारे में जानते हैं जिसमें 12 चक्र है और बीच में एक पंख है। 12 चक्रों में से तीन सफेद रंग तीन काले रंग तीन लाल रंग और 3 पीले रंग के चक्र है। और बीच में जो पंख है वह ऊपर से थोड़ा काला और बाकी का सफेद रंग है ।"
यह फ्लेग एक संदेश हमे देती हैं की हरा रंग धरती माँ को दर्शाता है। पंख यह दर्शाता है की हम सब एक हैं। छोटे बिंदु प्रधान, बुजुर्ग और लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं बड़े बिंदु संस्कृति के बीच एकता का प्रतिनिधित्व करते हैं सबसे बड़ा बिंदुओं का चक्र जो कि हमारे विभिन्न ग्रह पर विविध संस्कुर्तिओं की पूर्ण एकता का प्रतिनिधित्व करता हैं ।
(३) हमारा देश भारत को आजादी मिली तब कहीं स्वतंत्र सेनानी थे ऐसी ही तरह आदिवासी समाज के स्वतंत्र सेनानी और जननायक बिरसा मुंडा के बारे में जानते हो क्या आप ??
बिरसा मुंडा ने एक नेता के रूप में कई आदिवासी लोगों को अपने आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा काजन्म मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता-सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता-करमी पुर्ती (मुंडाईन) के सुपुत्र बिरसा पुर्ती (मुंडा) का जन्म 15 नवम्बर १८७५ को झारखण्ड के राँची खूंटी जिले के उलीहातू गाँव में हुआ था

बिरसा मुंडा ने तीन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उलगुलान किया। पहला, वह जल, जंगल, जमीन जैसे संसाधनो की रक्षा करना चाहते थे। दूसरा, नारी की रक्षा और सुरक्षा तथा तीसरा, वे अपने समाज की संस्कृति की मर्यादा को बनाये रखना चाहते थे।

1895 में बिरसा ने ज़मींदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-ज़मीन की लड़ाई छेड़ी। ... बिरसा ने 'अबुआ दिशुम अबुआ राज' यानि 'हमारा देश, हमारा राज' का नारा दिया।

उनके जीवन संघर्ष को हम शोषण अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ खड़ी कर सकते हैं।


आगे २ .....